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Atiq Ahmed Son Asad Encounter: उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और एक अन्य गुलाम का बीते दिन झांसी में एनकाउंटर कर दिया गया। दोनों आरोपियों के सिर पर पांच-पांच लाख रुपये का इनाम रखा गया था। 12 सदस्यीय यूपी एसटीएफ की टीम ने असद और गुलाम को ढेर कर दिया। एनकाउंटर के बाद सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोगों ने यूपी सरकार की माफियाओं को ‘मिट्टी में मिलाने’ की नीति की प्रशंसा की है, जबकि कई लोगों ने एनकाउंटर पर सवाल भी खड़े किए हैं। यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती, ओवैसी आदि ने एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए इसे सही नहीं बताया है। पिछले कुछ सालों में यूपी सरकार ने अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम किया है, जिसकी वजह से हजारों की संख्या में अपराधियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। अब असद के एनकाउंटर के बाद सवाल खड़े करने वाले कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि जब एनकाउंटर से ही इंसाफ होगा तो कोर्ट का क्या होगा? वहीं, कुछ लोग एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का भी जिक्र कर रहे हैं। आज हम एनकाउंटर के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के बारे में बताने जा रहे हैं। जानिए…
मुठभेड़ पर क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन?
अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, 23 सितंबर 2014 को सीजेआई आरएम लोढ़ा और रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें पुलिस एनकाउंटर की जांच के मामले में विस्तृत, प्रभावी और स्वतंत्र जांच के लिए मानक प्रक्रिया के रूप में 16 बिंदुओं का पालन किया जाना तय किया गया। यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में ये दिशानिर्देश जारी किए गए थे। इसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआर) के रजिस्ट्रेशन, मजिस्ट्रियल जांच के प्रावधानों के साथ-साथ खुफिया सूचनाओं के लिखित रिकॉर्ड रखना और सीआईडी जैसी बॉडीज द्वारा स्वतंत्र जांच शामिल है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यदि किसी पुलिस ऐक्शन में मौत हो जाती है तो उसकी अनिवार्य रूप से मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए। इसके अलावा, जांच के दौरान मृतक परिवार के किसी सदस्य या फिर किसी निकट संबंधी का भी उसमें होना अनिवार्य है। अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में पुलिस की ओर से एफआईआर भी दर्ज की जानी चाहिए और पता करना चाहिए कि क्या की गई कार्रवाई वैध थी या नहीं।
एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट ने और क्या-क्या कहा?
अदालत ने कहा कि इस तरह की जांच के बाद, संहिता की धारा 190 के तहत अधिकार क्षेत्र वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट को एक रिपोर्ट भेजी जानी चाहिए। पुलिसिया कार्रवाई वाले दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि जब भी पुलिस को आपराधिक गतिविधियों या गंभीर आपराधिक अपराध से संबंधित गतिविधियों पर कोई खुफिया जानकारी या सूचना मिलती है, तो उसे किसी रूप में केस डायरी या किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप में लिखा जाना चाहिए। कोर्ट के अनुसार, इस तरह की गुप्त सूचना या खुफिया जानकारी के आधार पर यदि कोई मुठभेड़ होती है और पुलिस पार्टी द्वारा फायरआर्म का उपयोग किया जाता है, जिसकी वजह से व्यक्ति की मौत हो जाती है तो ऐसे में बिना देरी किए हुए एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और धारा 157 के तहत अदालत को भेज दी जानी चाहिए। एनकाउंटर वाले मामलों में स्वतंत्र जांच के भी प्रावधान हैं। इसकी जांच सीआईडी या फिर अन्य थाने की पुलिस टीम द्वारा करवाई जानी चाहिए, जिसमें एक सीनियर अफसर भी शामिल हो। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन मानदंडों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत घोषित कानून के रूप में मानकर पुलिस मुठभेड़ों में मौत और गंभीर चोट के सभी मामलों में सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
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