Tuesday, April 29, 2025
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कांगेस नेता राहुल गांधी की अयोग्यता और मानहानि से जुड़ी कार्रवाई पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी फ्रंटफुट पर आकर खेल रहे हैं।

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कांगेस नेता राहुल गांधी की अयोग्यता और मानहानि से जुड़ी कार्रवाई पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी फ्रंटफुट पर आकर खेल रहे हैं। उन्होंने बीजेपी के प्रिय पात्र रहे सावरकर का नाम लेने पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्हें एक और मानहानि का मुकदमा झेलना पड़ सकता है।शिंदे महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार चला रहे हैं। वह बीजेपी पर किसी भी हमले को व्यक्तिगत तौर पर हुए हमले की ही तरह ले रहे हैं।

दरअसल,शिंदे भी कानूनी चाबुक की पड़ने वाली मार से आशंकित हैं। उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि शिंदे बनाम उद्धव की लड़ाई में क्या सुप्रीम कोर्ट उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो उनका सियासी भविष्य कैसा होगा क्योंकि अंदरखाने इस बात की भी चर्चा है कि उद्धव ठाकरे और बीजेपी फिर से एक राह पर चल सकते हैं।

इधर, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान खंडपीठ ने शिवसेना के एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के गुटों के बीच झगड़े से संबंधित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

इसके साथ ही महाराष्ट्र में सियासी अनिश्चितता भी जारी है कि क्या एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहेंगे ? क्या उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की सुविधा के साथ यथास्थिति बहाल हो सकेगी? क्या शिंदे गुट के विधायक अयोग्यता का सामना करेंगे? क्या सदन को भंग कर दिया जाएगा और जल्द ही चुनाव होगा? या मौजूदा स्थिति ही बनी रहेगी?

ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट किसी मुख्यमंत्री को हटा सकता है?NDTV पर लिखे एक कॉलम में राजनीतिक रणनीतिकार अमिताभ तिवारी ने लिखा है कि आखिरी सवाल का उत्तर हां है। अतीत में भी सत्तासीन मुख्यमंत्री को सुप्रीम कोर्ट पद से हटा चुका है।

मामला सात साल पुराना है। 2016 की जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री कलिखो पुल को पद से हटा दिया था। वह 145 दिन ही मुख्यमंत्री रह सके थे। पुल को पद से हटाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में यथास्थिति बहाल कर दी थी। साथ ही उनके सभी निर्णयों को अमान्य करार दिया था।

हालांकि, महाराष्ट्र का मामला बहुत ही जटिल और पेचीदा है, जिसने संविधान की दसवीं अनुसूची, जो दलबदल से संबंधित है, को फिर से चर्चा में ला दिया है। मामले में शिंदे खेमे के विधायकों ने दलबदल या किसी अन्य पार्टी में विलय नहीं किया और असली शिवसेना होने का दावा किया।

शिंदे गुट ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की मदद से (जैसा कि उद्धव गुट द्वारा आरोप लगाया गया था) विश्वास मत परीक्षण में भाजपा के साथ मिलकर बहुमत हासिल करने में कामयाबी हासिल की और अपना स्पीकर नियुक्त कर लिया। मुख्य न्यायाधीश, डी वाई चंद्रचूड़ ने दोनों गुटों और राज्यपाल द्वारा रखी गई प्रमुख दलीलों पर सवाल उठाए हैं।

माना जा रहा है कि खंडपीठ का फैसला इन्हीं दो बिंदुओं पर टिका हो सकता है। हालांकि, CJI ने उद्धव गुट के सामने यह सवाल भी उठाया है कि आपने विश्वास मत परीक्षण से पहले ही इस्तीफा क्यों दे दिया? कोर्ट की नजर में उद्धव ठाकरे का यह बड़ा पॉलिटिकल ब्लंडर है।

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