[ad_1]
ऐप पर पढ़ें
कभी किसान राजनीति के अगुवा रहे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत आज कमजोर पड़ती दिख रही है। उनके दिवंगत बेटे अजित सिंह और पौत्र जयंत चौधरी को 2019 में चुनावी हार का सामना करना पड़ा था। यही नहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय लोकदल को महज 8 सीटों पर ही जीत मिली थी, जबकि उसने 33 पर चुनाव लड़ा था। यूपी में मई में निकाय चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले राष्ट्रीय लोकदल को एक और बड़ा झटका लगा है। चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय लोकदल का राज्यस्तरीय पार्टी का दर्जा ही छीन लिया है।
ऐसे में अब राष्ट्रीय लोकदल के पास एक रिजर्व सिंबल भी नहीं रह जाएगा और उसका नल चुनाव चिह्न छिन जाएगा। अब तक पश्चिम यूपी में रालोद की पहचान नल चुनाव चिह्न से होती रही है। लेकिन चुनाव आयोग की ओर से दर्जा छिनना उसके लिए कोढ़ में खाज जैसा है। किसान आंदोलन के असर और मुस्लिम जाट एकता फिर स्थापित होने का दावा करने वाले जयंत चौधरी को 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता की उम्मीद थी। लेकिन 33 सीटों पर लड़ने के बाद भी 25 फीसदी सीटें ही हासिल कर सकी थी।
चुनाव से पहले छिना राष्ट्रीय दर्जा, 2024 में ये कैसे दिखा पाएंगे कमाल
अब उसके आगे दोहरी चुनौती खड़ी है। एक तरफ जनाधार नहीं जुट पा रहा है तो वहीं सिंबल के तौर पर जो दशकों से पहचान चली आ रही थी, वह भी छिन गई है। इससे समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव को भी झटका लगा है, जो राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन में हैं। दोनों दलों ने 2022 के विधानसभा चुनाव में भी साथ मिलकर इलेक्शन लड़ा था। किसी भी पार्टी को राज्य स्तरीय दल मिलने के लिए यह जरूरी होता है कि उसे विधानसभा चुनाव में 3 फीसदी सीटें मिली हों या फिर न्यूनतम 3 सीटें हासिल की हों।
2022 के झटके से उबरी नहीं, अब नई मुश्किल खड़ी
बीते साल हुए यूपी विधानसभा चुनाव में रालोद को लगा झटका ऐतिहासिक था। इसकी वजह यह थी कि साल भर से ज्यादा चले किसान आंदोलन का केंद्र वही पश्चिम यूपी था, जिसे रालोद का गढ़ कहा जाता है। इसके अलावा जाट बिरादरी का भी इस आंदोलन से जुड़ाव देखने को मिला था। इसके बाद भी भाजपा को बड़ी बढ़त मिल गई थी। ऐसे में रालोद का सिंबल छिन जाना उसके लिए दोहरे झटके की तरह है।
[ad_2]