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2018 का कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने सिद्धारमैया के चेहरे पर लड़ा, जहां उसे हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, वोट शेयर के मामले में पार्टी का प्रदर्शन ‘ऐतिहासिक’ रहा। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब चार दशक में ऐसा पहली बार हुआ जब यहां कांग्रेस के वोट शेयर पर बढ़ोतरी दर्ज की गई। कांग्रेस का वोट शेयर 2013 के 36.59% से बढ़कर 2018 में 38.14% पर जा पहुंचा। मगर, सीटों के मामले में गिरावट देखी गई। 2013 में जहां कांग्रेस के पास 122 सीटें थीं वो पिछली बार घटकर महज 80 रह गईं। इससे पता चलता है कि वोट शेयर का हर एक सीट पर क्या रोल है और बात बिगड़ भी सकती है। यह स्थिति कांग्रेस के लिए इस बार भी दुविधा भी खड़ी कर रही है।
बात अगर 2023 की करें तो पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए कांग्रेस के सामने अपना वोट शेयर बढ़ाने की चुनौती है। इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि जनता दल (सेक्युलर) की स्थिति कुछ सीटों पर कमजोर हो तो कुछ क्षेत्रों में मजबूत भी नजर आए। यह बात थोड़ी उलझी हुई लग सकती है, मगर पिछली बार के आंकड़ें तो यह बताते हैं। कर्नाटक में आमतौर पर कांग्रेस, बीजेपी और क्षेत्रीय पार्टी जेडी (एस) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता रहा है। वोट शेयर डेटा के आकलन से पता चलता है कि 224 विधानसभा क्षेत्रों में ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस बनाम बीजेपी की लड़ाई है। कई सीटों पर कांग्रेस बनाम जेडी (एस) की सीधी लड़ाई रही है। कुछ सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला भी है। हालांकि, ऐसी बहुत कम सीटें हैं जहां बीजेपी बनाम जेडी (एस) के बीच सीधा मुकाबला हो सकता है।
करीब आधी सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर
अप्रैल, 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच 222 में से 110 सीटों पर सीधी लड़ाई हुई थी। ये ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों को संयुक्त तौर पर 80 फीसदी से अधिक वोट मिले थे। इन पर JD(S) तो मुकाबले में ही नहीं नजर आई। जेडी (एस) उत्तर और तटीय कर्नाटक में अहम खिलाड़ी नहीं है। उनके वोटों का बड़ा बहुमत दक्षिणी कर्नाटक से आता है। साउध कर्नाटक का पुराना मैसूर इलाका राज्य में भाजपा की कमजोर कड़ी माना जाता है। यहां 29 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जिन पर चुनावी लड़ाई कांग्रेस और जद (एस) के बीच थी। सिर्फ 9 सीटों पर मुकाबला भाजपा और जेडी (एस) के बीच देखा गया, जबकि कांग्रेस यहां मामूली खिलाड़ी मालूम पड़ी।
18-20% तक वोट शेयर के साथ बड़ी भूमिका में JD(S)
JD(S) के वोट शेयर पर नजर डालें तो 2008 के बाद से ही इसमें एक निरंतरता देखी गई है जो कि 18-20% के बीच है। जेडी (एस) को ये वोट राज्य की कुछ चुनिंदा सीटों से हासिल होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि अपने गढ़ साउथ कर्नाटक में उनके वोट लगातार बढ़ते गए हैं। हालांकि, राज्य के दूसरे हिस्सों में उनकी स्थिति कमजोर होती दिखी है। जेडी (एस) के वोटों में होने वाली बढ़ोतरी जितना कांग्रेस को नुकसान पहुंचाती है, उतना भाजपा को नहीं। इससे साफ होता है कि अगर कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता पर वापसी करना चाहती है तो महज एंटी इनकंबेंसी से बात नहीं बनने वाली। यहां यह जरूरी हो जाता है कि जेडी (एस) के वोट शेयर बढ़ने से रोके जाएं। ऐसे मतदाता जो बीजेपी सरकार से नाखुश हैं उन्हें JD(S) की ओर से मुड़ने से रोका जाए।
कितनी सीटों पर जेडी (एस) बनेगी किंगमेकर?
यहां 2008 के बाद से कांग्रेस बनाम भाजपा निर्वाचन क्षेत्रों के सभी चुनावी का विश्लेषण जरूरी हो जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पता चलता है कि जद (एस) को 61 सीटों पर प्रमुख दलों के उम्मीदवारों के नुकसान के अंतर से अधिक वोट मिले। इन विधानसभा क्षेत्रों में जेडी (एस) को कुल वोटों का 1% से 14% के बीच हासिल हुआ। इनमें से ज्यादातर सीटें उत्तर और मध्य कर्नाटक में हैं, जहां जद (एस) की उपस्थिति बहुत कम है। अधिकतर चुनावों की तरह कर्नाटक में इस बार भी मुकाबला कड़ा हो सकता है। कई सीटों पर जीत-हार के बीच का अंतर कुछ हजार वोटों के नीचे रहने की संभावना है। जद (एस) कई निर्वाचन क्षेत्रों में 5% वोट शेयर लेकर भी कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ सकती है। इस तरह जेडी (एस) कई विधानसभा सीटों पर किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकती है।
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