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मध्य प्रदेश का सुप्रसिद्ध शरबती गेहूं (MP Sharbati Wheat) अब देश की बौद्धिक संपदा में सम्मिलित हो गया है। कृषि उत्पाद श्रेणी में शरबती गेहूं सहित रीवा के सुंदरजा आम को हाल ही में जीआई रजिस्ट्री द्वारा पंजीकृत किया गया है। खाद्य सामग्री श्रेणी में मुरैना गजक ने जीआई टैग प्राप्त किया है।
हस्तशिल्प श्रेणी में प्रदेश की गोंड पेंटिंग, ग्वालियर के हस्तनिर्मित कालीन, डिंडोरी के लौहशिल्प, जबलपुर के पत्थर शिल्प, वारासिवनी की हैंडलूम साड़ी तथा उज्जैन के बटिक प्रिंट्स को भी जीआई टैग प्राप्त हुआ है।
शरबती गेहूं की खासियत
आधिकारिक जानकारी के अनुसार, शरबती गेहूं सीहोर और विदिशा जिलों में उगाई जाने वाली गेंहू की एक क्षेत्रीय किस्म है, जिसके दानों में सुनहरी चमक होती है। इस गेहूं की चपाती में फाइबर, प्रोटीन और विटामिन बी और ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। शरबती गेहूं को आवेदन क्रमांक 699 के संदर्भ में जीआई टैग जारी किया गया है।
रीवा का सुंदरजा आम अपनी अनूठी सुगंध और स्वाद के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है। कम चीनी और अधिक विटामिन ई की वजह से यह आम मधुमेह रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। सुंदरजा आम को आवेदन क्रमांक 707 के संदर्भ में जीआई टैग प्राप्त हुआ है।
मुरैना की गजक का 100 वर्षों से अधिक का इतिहास
मुरैना की गजक को आवेदन क्रमांक 681 के संदर्भ में जीआई टैग जारी किया गया है। गुड़ या चीनी और तिल के मिश्रण से बनी इस पारंपरिक मिठाई का 100 वर्षों से अधिक का इतिहास रहा है।
जीआई आवेदन क्रमांक 701 के संदर्भ में मध्य प्रदेश की गोंड पेंटिंग को पंजीकृत किया गया है। मानव के प्रकृति के साथ जुड़ाव दर्शाने वाली इस जनजातीय चित्रकला की प्रथा गोंड जनजाति में प्रचलित है जिसे विभिन्न उत्सवों और अवसरों पर बनाया जाता है।
ग्वालियर के हस्तनिर्मित कालीन की खासियत
ग्वालियर के हस्तनिर्मित कालीन को जीआई आवेदन क्रमांक 708 के संदर्भ में पंजीकृत किया गया है। इस कालीन बुनाई में चमकीले रंगों का उपयोग कर पशु, पक्षी और जंगल के दृश्यों का रूपांकन किया जाता है। ये कालीन ऊनी, सूती और रेशम आधारित होते हैं।
डिंडोरी के अगरिया समुदाय के लोहशल्पि को आवेदन क्रमांक 697 के संदर्भ में जीआई टैग प्राप्त हुआ है। इस शल्पि में लोहे को गरम कर और पीट- पीटकर वांछित मोटाई और आकार के पारंपरिक औजार और सजावटी वस्तुएं बनाई जाती हैं।
जबलपुर का पत्थरशिल्प भेड़ाघाट में मिलने वाले संगमरमर पर केंद्रित है। इस हस्तशिल्प में भगवान की मूर्तियां, नक्काशीदार पैनल, सजावटी वस्तुएं और बर्तन बनाए जाते हैं। इस हस्तशिल्प का निर्यात मुख्यत: फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में किया जाता है। इसे आवेदन क्रमांक 710 के संदर्भ में पंजीकृत किया गया है।
सोलह हाथ की साड़ी सर्वाधिक लोकप्रिय
बालाघाट के वारासिवनी में बनने वाली हैंडलूम साड़ियों को आवेदन क्रमांक 709 के संदर्भ में जीआई टैग प्राप्त हुआ है। धारियों और चैक के जटिल पैटर्न में बनाए जाने वाली ये हल्की और महीन साड़ीयां अपनी सादगी की लिए जानी जाती हैं। सोलह हाथ की साड़ी सर्वाधिक लोकप्रिय है, जिसमें प्रत्येक ताना धागा 16 बाना धागों पर बुनाया जाता है।
उज्जैन की प्राचीनतम कला बटिक प्रिंट को आवेदन क्रमांक 700 के संदर्भ में जीआई टैग प्राप्त हुआ है। बटिक शिल्पकार डाई की प्रक्रिया में मोम का प्रयोग कर कलात्मक पैटर्न और मोटिफ बनाते हैं।
सुंदरजा आम और मुरैना गजक को दिनांक 31 जनवरी 2023 को जीआई प्रमाणपत्र जारी किया गया है। शरबती गेंहू और गोंड पेंटिग के जीआई प्रमाणपत्र दिनांक 22 फरवरी 2023 को जारी किया गया हैं। डिंडोरी की लोहशिल्प, उज्जैन के बटिक प्रिंट्स, ग्वालियर के हस्तनिर्मित कालीन, वारासिवनी की हैंडलूम साड़ी और जबलपुर के पत्थर शिल्प के प्रमाणपत्र दिनांक 31 मार्च 2023 को जारी किए गए हैं।
प्रदेश की आदिवासी गुड़िया, पिथोरा पेंटिंग, काष्ठ मुखौटा, ढक्कन वाली टोकरी, और चिकारा वाद्य यंत्र के जीआई आवेदन विचाराधीन हैं।
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