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Loksabha Election 2024: अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में लगा हुआ है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल बजट सत्र के दौरान कारोबारी गौतम अडानी को लेकर सामने आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर हमलावर रहे। अडानी और राहुल गांधी की सांसदी जाने के मामले में लंबे समय से बिखरा-बिखरा दिखाई दे रहा विपक्ष एक साथ नजर आया। सभी ने एक-दूसरे के साथ एक सुर मिलाए, जिससे पूरे सत्र के दौरान संसद लगातार स्थगित होती रही। विरोध प्रदर्शन होने के बाद भी सरकार ने विपक्ष की जेपीसी की मांग नहीं मानी, लेकिन इस बीच विपक्ष को अडानी मामले में बड़ा झटका जरूर लग गया। दरअसल, एनसीपी चीफ शरद पवार ने कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के जेसीपी की मांग से खुद को अलग कर लिया है। पवार का यह कदम विपक्षी एकजुटता के लिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अहम झटका माना जा रहा है।
पूरा विपक्ष एक तरफ, पवार दूसरी तरफ
तमाम विपक्षी दल एनसीपी चीफ शरद पवार की ओर उम्मीदों से देखते आए हैं। इसके पीछे का कारण पवार द्वारा महाराष्ट्र में कुछ साल पहले एक-दूसरे से विपरीत विचारधारा वाले दलों को साथ में लाना है। एनसीपी चीफ की वजह से ही महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी साथ आ पाए और सरकार बनाई। इसी वजह से लोकसभा चुनाव को लेकर भी विपक्षी दल उम्मीद कर रहे थे कि शरद पवार अपने अनुभव से जरूर विपक्ष को एकजुट रख सकेंगे और बीजेपी के खिलाफ कोई बड़ा विकल्प जनता को दे सकेंगे, लेकिन ऐसा होने से पहले ही विपक्ष का पूरा खेल बिगड़ गया। ‘एनडीटीवी’ को दिए एक इंटरव्यू में शरद पवार ने विस्तार से अडानी मामले पर बात की। उन्होंने साफ किया कि मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से ही करवाई जानी चाहिए, नाकि जेपीसी की। उल्लेखनीय है कि पूरे बजट सत्र के दौरान विपक्ष जेपीसी पर ही अड़ा रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कमेटी बनाए जाने के बाद भी विपक्ष जेपीसी की मांग करता रहा। पवार ने इंटरव्यू में कहा, ”विपक्ष ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को जरूरत से ज्यादा अहमियत दी। इस कंपनी के बारे में ज्यादा किसी को भी मालूम नहीं है। यहां तक कि इसका नाम भी हमने नहीं सुना।” पवार ने आशंका जताई है कि इस मामले में एक इंडस्ट्रियल समूह को निशाना बनाया गया है। पवार द्वारा अडानी समूह का समर्थन किए जाने से विपक्ष सकते में आ गया है।
अडानी मुद्दे को क्यों किसी भी हाल में छोड़ना नहीं चाहता विपक्ष?
जनवरी के आखिरी में अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से ही विपक्ष इस मामले में तीखा हमला बोलता रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, टीएमसी की महुआ मोइत्रा समेत कई विपक्षी नेता हमलावर दिखे। यही नहीं, राहुल गांधी काफी पहले से अडानी के जरिए केंद्र सरकार को घेरते आए हैं। इसी वजह से जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट आई तो साफ हो गया कि मुद्दों की कमी और एकजुटता से जूझ रहा विपक्ष शायद ही इस मुद्दे को हाथ से जाने दे। राजनीतिक एक्सपर्ट्स भी मानने लगे कि लोकसभा चुनाव से पहले हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आने की वजह से विपक्ष को ‘बैठे-बिठाए’ सरकार पर निशाना साधने का बड़ा मुद्दा हाथ लग गया। विपक्ष लंबे समय से किसी ऐसे मुद्दे की तलाश में था, जिसके जरिए वह गरीबों, मिडिल क्लास तक पहुंच सके। इसी वजह से राहुल गांधी, संजय सिंह समेत अन्य नेताओं ने एलआईसी, एसबीआई, ईपीएफओ आदि का जिक्र किया और कहा कि इसका पैसा अडानी की कंपनियों में निवेश किया जा रहा है। विपक्ष एकजुट होकर इस मुद्दे के जरिए घर-घर तक पैठ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है, लेकिन अब पवार के अलग रुख की वजह से उसकी एकजुटता पर जरूर सवाल खड़े होने लगे हैं।
पवार की अलग राय पर कांग्रेस समेत विपक्षी दल क्या कह रहे?
शरद पवार का इंटरव्यू सामने आने के बाद विपक्षी दलों में हलचल मच गई। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट करते हुए मीडिया पर भी हमला बोला। उन्होंने लिखा, ”अडानी के स्वामित्व वाले चैनल ने अडानी के दोस्तों का इंटरव्यू लिया और बताया कि कैसे उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। भारतीय मीडिया ज़िंदाबाद- आप वास्तव में एक दुर्लभ प्रजाति हैं।” टीएमसी नेता ने अपने ट्वीट के साथ शरद पवार के इंटरव्यू का स्क्रीनशॉट भी लगाया। वहीं, कांग्रेस ने पवार के बयान को उनका निजी विचार बताया। कांग्रेस ने कहा कि उसके सहयोगी एनसीपी का अपना विचार हो सकता है, लेकिन 19 समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों का मानना है कि अडानी समूह के खिलाफ आरोप समूह वास्तविक और बहुत गंभीर हैं। कांग्रेस ने यह भी कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सहित सभी 20 समान विचारधारा वाले विपक्षी दल एकजुट हैं और ‘भाजपा के हमलों’ से संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए एक साथ रहेंगे। कांग्रेस के बयान से साफ है कि पार्टी उम्मीद कर रही है कि भले ही पवार अडानी मामले में विपक्षी दलों के साथ नहीं हों, लेकिन वे बीजेपी के खिलाफ जरूर विपक्ष का साथ देते रहेंगे।
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