बाल दिवस: ये जो सप्ताह अभी चल रहा है इसका अपना ही महत्वपूर्ण इतिहास है यानि 21 दिसम्बर से लेकर 28 दिसम्बर के भीतर 8 दिनों में ही गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था। 21 दिसम्बर को गुरू गोबिंद सिंह जी द्वारा परिवार सहित आनंदपुर साहिब किला छोङने से लेकर 28 दिसम्बर तक का पूरा इतिहास है जो मानवता के लिए की गई बहुत बड़ी कुर्बानी है। जिस तरह गुरू गोबिन्द सिंह जी के बड़े साहिबज़ादे अजीत सिंह और छोटे साहिबज़ादे जुझार सिंह ने मुगलों की फौज से युद्ध करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी और बाकि दो साहिबज़ादों साहिब ज़ोरावर सिंह और साहिब फतेहपुर सिंह को औरंगजेब के हुक्म से दिवार में जिंदा चुनवा दिया गया। यह महान कुर्बानी इतिहास के रूप में आज भी पंजाबु में सिरहिंद में गुरूद्वारा फतेहग़ढ साहिब में जिंदा है और वह दिवार भी है जिसमें यह दोंनो छोटे साहिबज़ादों को चुनवा गया -यह आज के दौर की और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक है। इसलिए इस ऐतिहासिक कुर्बानी को जो दिसम्बर 21 से 28 के बीच हुई उसे बाल दिवस के रूप में मनाई जानी चाहिए ताकि मानवता की रक्षा के लिए की गई यह बेमिसाल कुर्बानी को सही श्रद्धांजलि मिले।गुरुद्वारा गुरुसिंग सभा कमिटी की और से देसाईगंज मे आदर्श स्कुल मे चित्रपट और तलावर बाजी का आयोजन किया गया था इसमे आदर्श स्कुल के शिक्षक भी शामिल थे शेकडो नागरिक तलावर बाजी देखणे आये हुये थे।
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देसाईगंज आदर्श स्कुल के बाहेर तलवार बाजी देखणे आये नागरिक